आतंकवादी की परिभाषा अलग अलग समय पर अलग अलग होता है और सजा भी अलग अलग होता है। क़ानून सब के लिए बराबर है इस बात से किसी को इंकार नहीं, परन्तु इस पर अमल व्यक्ति विशेष, जाती विशेष, धर्म विशेष देख कर ही होता है। लेहाज़ा यह कहना की हर आतंकवादी को फांसी दो, आँख में पट्टी बंधी हुई न्यायिक व्यवस्था को चुनौती के सामान होगा। फांसी रुके या न रुके, आतंकवाद ज़रूर रुकना चाहिए और यही सभी हिन्दुस्तानी का लक्ष होना चाहिए। जय हिन्द
Thursday, July 30, 2015
धर्म
दुनिया मैं बहुत कम ही लोग होंगे जो अपने मन से किसी धर्म को अपनाये होंगे , बाक़ी लोग तो इस लिए हिन्दू ,मुसलमान, ईसाई ,सिख हैं क्योँ की इनके बाप ,दादा हिन्दू, मुसलमान ,ईसाई, सिख थे।
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