Thursday, July 30, 2015

आतंकवादी की परिभाषा अलग अलग समय पर अलग अलग होता है और सजा भी अलग अलग होता है। क़ानून सब के लिए बराबर है इस बात से किसी को इंकार नहीं, परन्तु इस पर अमल व्यक्ति विशेष, जाती विशेष, धर्म विशेष देख कर ही होता है। लेहाज़ा यह कहना की हर आतंकवादी को फांसी दो, आँख में पट्टी बंधी हुई न्यायिक व्यवस्था को चुनौती के सामान होगा। फांसी रुके या न रुके, आतंकवाद ज़रूर रुकना चाहिए और यही सभी हिन्दुस्तानी का लक्ष होना चाहिए। जय हिन्द

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